एक देश एक चुनाव वन नेशन वन इलेक्शन – One Nation-One Election पर अब आगे की राह क्या है? 10 सवाल-जवाब में समझिए – What is way forward now on One Nation One Election Understand in 10 questions and answers ONOE ntc
देश में एक साथ चुनाव कराए जाने से जुड़े दो विधेयक केंद्र सरकार ने लोकसभा में पेश कर दिए हैं. इस बीच, विपक्ष का तीखी बहस और विरोध देखने को मिला, जिसके बाद सरकार ने इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति के पास भेजने की सिफारिश की. स्पीकर ने 31 सदस्यों वाली कमेटी गठित कर दी है. पीपी चौधरी चेयरमैन बनाए गए हैं. सवाल उठ रहा है कि वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation-One Election) पर अब आगे की राह क्या है? 10 सवाल-जवाब में समझिए…
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले संविधान (129वां संशोधन) बिल 2024 और उससे जुड़े संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) बिल 2024 को मंगलवार को लोकसभा के पटल पर पेश किया. ONOE को लेकर विपक्ष का कहना था कि ये सरकार का तानाशाही वाला कदम है. जबकि कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने स्पष्ट किया कि जब ये विधयक कानून बनेगा तो राज्य को मिली शक्तियों से छेड़छाड़ नहीं करेगा. विपक्ष की मांग पर वोटिंग भी कराई गई. सरकार के पक्ष में 269 और विरोध में 198 वोट पड़े.
इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब ये विधेयक कैबिनेट की बैठक में आया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर स्तर पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए इसे JPC को सौंपने का समर्थन किया था. इस कमेटी में विस्तार से चर्चा हो सकती है. उसकी रिपोर्ट को कैबिनेट मंजूरी देगी. उसके बाद सदन में फिर इस बिल पर चर्चा होगी.
1. जेपीसी के पास चला गया प्रस्ताव
लोकसभा स्पीकर ने सरकार की मांग को स्वीकर किया और इस विधेयक को जेपीसी के पास भेज दिया. स्पीकर ने विभिन्न राजनीतिक दलों से जेपीसी के गठन के लिए पार्टी मेंबर्स के नाम मांगे थे और बुधवार शाम को 21 सदस्यों की कमेटी घोषित कर दी. इसमें पीपी चौधरी (BJP) डॉ. सीएम रमेश (BJP), बांसुरी स्वराज (BJP), परषोत्तमभाई रूपाला (BJP), अनुराग सिंह ठाकुर (BJP), विष्णु दयाल राम (BJP), भर्तृहरि महताब (BJP), डॉ. संबित पात्रा (BJP), अनिल बलूनी (BJP), विष्णु दत्त शर्मा (BJP), प्रियंका गांधी वाड्रा (कांग्रेस), मनीष तिवारी (कांग्रेस), सुखदेव भगत (कांग्रेस), धर्मेन्द्र यादव (समाजवादी पार्टी), कल्याण बनर्जी (TMC), टीएम सेल्वागणपति (DMK), जीएम हरीश बालयोगी (TDP), सुप्रिया सुले (NCP-शरद गुट), डॉ. श्रीकांत एकनाथ शिंदे (शिवसेना- शिंदे गुट), चंदन चौहान (RLD), बालाशोवरी वल्लभनेनी (जनसेना पार्टी) का नाम शामिल है.
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2. जेपीसी क्या करेगी?
जेपीसी की टीम अब सभी दलों के साथ बैठकर चर्चा करेगी और उनके सुझाव लेगी. प्रस्ताव पर सामूहिक सहमति की कोशिश करेगी. उसके बाद अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी और ये रिपोर्ट लोकसभा स्पीकर को सौंपी जाएगी. चूंकि सदन में बीजेपी की संख्या ज्यादा है, इसलिए संख्याबल के आधार पर बीजेपी सदस्यों को जेपीसी में ज्यादा जगह मिली है. जेपीसी के अलग-अलग मेंबर्स अपनी राय देंगे. ये रिपोर्ट काफी मायने रखेगी. उसी आधार पर इस विधेयक का भविष्य निर्भर करेगा. हालांकि, जेपीसी की सिफारिशें सलाहात्मक होती हैं, बाध्यकारी नहीं. सरकार इन पर विचार करने के लिए स्वतंत्र होती है. यानी सिफारिशों को मान सकती है या आंशिक रूप से स्वीकार कर सकती है या अस्वीकार भी कर सकती है.
इससे पहले सभी राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों को बुद्धिजीवियों, विशेषज्ञों और सिविल सोसायटी के सदस्यों के साथ अपने विचार साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा. इसके अतिरिक्त, आम जनता से भी सुझाव मांगे जाएंगे, जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में समावेशिता और पारदर्शिता को बढ़ाएंगे. विधेयक के प्रमुख पहलुओं में इसके लाभ और देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए जरूरी कार्यप्रणाली पर विचार-विमर्श किया जाएगा. संभावित चुनौतियों का समाधान किया जाएगा और विविध दृष्टिकोणों को एकत्रित किया जाएगा. बार-बार होने वाले चुनावों से जुड़ी लागत और व्यवधानों को कम करने के बारे में बताया जाएगा. सरकार चाहती है कि इस विधेयक को लेकर व्यापक समर्थन हासिल किया जाए.
3. फिर सदन के पटल पर रखा जाएगा विधेयक
स्पीकर इस बात का निर्णय ले सकते हैं कि जेपीसी की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा जाए या नहीं. यदि रिपोर्ट पटल पर रखी जाती है तो सदस्य उस पर चर्चा करने का अनुरोध कर सकते हैं. स्पीकर चर्चा का समय निर्धारित कर सकते हैं. वहीं, जेपीसी की सिफारिशें मिलने के बाद एनडीए सरकार की अगली चुनौती इसे संसद से पास कराने की होगी. यदि जेपीसी ने विधेयक में संशोधन की सिफारिश की है तो सरकार उस संशोधित विधेयक को सदन के पटल पर पेश कर सकती है. यदि सरकार सिफारिशों को स्वीकार नहीं करती तो वही विधेयक पेश होगा, जिसे पहले तैयार किया गया था. सरकार स्थिति भी स्पष्ट करेगी. इस पर लंबी चर्चा होगी.
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4. सरकार को करना होगा ये काम?
मोदी सरकार की अगली चुनौती इस विधेयक को संसद से पास कराने की होगी. चूंकि वन नेशन वन इलेक्शन से जुड़ा बिल संविधान संशोधन विधेयक है इसलिए लोकसभा और राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए विशेष बहमत की जरूरत होगी. अनुच्छेद 368 (2) के तहत संविधान संशोधनों के लिए विशेष बहुमत की जरूरत होती है. इसका अर्थ है कि प्रत्येक सदन में यानी कि लोकसभा और राज्यसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा इस विधेयक को मंजूरी देनी होगी.
5. सदन की यह प्रक्रिया पूरी करनी होगी?
यदि विधेयक सदन में पेश होता है तो बहस के बाद मतदान होगा. यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है. दरअसल, मंत्री या विधेयक का प्रस्तावक बिल को लोकसभा या राज्यसभा में पेश करता है. स्पीकर/ सभापति इसे पेश करने की अनुमति देते हैं. पेश किए गए विधेयक का शीर्षक और उद्देश्य पढ़ा जाता है. यदि विधेयक में संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं तो हर संशोधन पर अलग-अलग मतदान होता है. सदन संशोधन को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है. संशोधनों के बाद पूरे विधेयक पर मतदान होता है. नए सदन में इलेक्ट्रॉनिक मशीन और पर्ची से भी वोट देने की सुविधा है. यदि विधेयक को सदन में बहुमत प्राप्त होता है तो यह पारित हो जाता है. पारित विधेयक को उच्च सदन (राज्यसभा) में भेजा जाता है. वहां भी प्रस्ताव पर चर्चा होगी. मतदान होने के बाद बहुमत की अंतिम मुहर लगेगी.
5. सदन में बनाने होंगे बहुमत के समीकरण
चूंकि ये बिल संविधान संशोधन है, इसलिए ये तभी पास होंगे, जब इन्हें संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलेगा. यानी लोकसभा में इस बिल को पास कराने के लिए कम से कम 362 और राज्यसभा के लिए 163 सदस्यों का समर्थन जरूरी होगा. हालांकि, अभी राज्यसभा में 237 सदस्य हैं, इसलिए दो तिहाई सदस्य 158 का बहुमत जरूरी है. संसद से पास होने के बाद इस बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा का अनुमोदन भी जरूरी होगा. यानी, 15 राज्यों की विधानसभा से भी इस बिल को पास करवाना जरूरी है. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही ये बिल कानून बन सकेंगे.
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संसद में एनडीए के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है. लोकसभा में अगर सभी 543 सांसद वोटिंग में शामिल होंगे तो बिल पास कराने के लिए 362 वोट चाहिए होंगे. अभी लोकसभा में एनडीए के पास 292 सीटें हैं. BJP के 240 सदस्य हैं. TDP के 16, JDU के 12, शिवसेना के 7, लोक जन शक्ति पार्टी (रामविलास) के 5, जनसेना, जेडीएस और आरएलडी के 2-2 के सांसद हैं. आजसू, अपना दल (सोनेलाल), हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और एनसीपी का एक-एक सांसद है.
इसी तरह राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए 158 वोट की जरूरत होगी. जबकि, राज्यसभा में NDA की 112 सीटें हैं. 6 मनोनीत सांसद भी एनडीए के साथ हैं. यानी 118 सदस्य एनडीए खेमे में देखने को मिल सकते हैं. राज्यसभा में BJP के 98 सदस्य हैं. जेडीयू के 4, एनसीपी के 3, टीडीपी, जेडीएस, राष्ट्रीय लोकदल, शिवसेना, आरपीआई का एक-एक सदस्य है.
हालांकि, YSRCP, बसपा, बीजेडी जैसे दल भी ONOE के समर्थन में है. बीआरएस भी इस विधेयक का समर्थन कर सकती है. जगन मोहन रेड्डी की पार्टी YSRCP के लोकसभा में 4 सांसद हैं और राज्यसभा में 8 मेंबर हैं. बीजेडी के राज्यसभा में 7 और बीआरएस के चार सदस्य हैं. बसपा का राज्यसभा में एक मेंबर है. यानी बीजेपी को राज्यसभा में 20 और लोकसभा में 4 गैर एनडीए सदस्यों का समर्थन मिल सकता है.
वहीं, इस बिल का विरोध करने वाली पार्टियों के पास लोकसभा में 205 और राज्यसभा में 85 सीटें हैं. कुल मिलाकर, सरकार को इस बिल को पास कराने के लिए विपक्ष की जरूरत होगी.
हालांकि, दो तिहाई बहुमत सदस्यों की उपस्थिति पर निर्भर करता है. वोटिंग के दिन सदन में जितनी उपस्थिति रहेगी, उसकी दो तिहाई संख्या बहुमत का आधार मानी जाती है. ऐसे में एक संभावना यह भी बन जाती है कि अगर कोई विपक्षी दल विधेयक की वोटिंग का बहिष्कार करता है तो इसका लाभ सत्ता पक्ष को मिल जाता है. एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव का 32 दल समर्थन कर रहे हैं, जबकि 15 अन्य इसका विरोध कर रहे हैं.
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6. राज्य विधानसभाओं का क्या होगा रोल?
दरअसल, कुछ संवैधानिक संशोधन ऐसे होते हैं जो राज्य और केंद्र के अधिकारों को प्रभावित करते हैं. ऐसे संशोधनों के लिए राज्यों की सहमति अनिवार्य होती है. ऐसे मामलों में कम से कम आधी राज्य विधानसभाओं (50% से ज्यादा) की मंजूरी जरूरी है. यदि किसी दल या गठबंधन का 15 या ज्यादा राज्य विधानसभाओं में बहुमत है तो वो संविधान संशोधन के लिए जरूरी समर्थन आसानी से हासिल कर सकता है. फिलहाल, देश में 28 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश विधानसभाएं हैं. 50% से ज्यादा राज्यों की सहमति का मतलब है कि कम से कम 15 राज्य विधानसभाओं की मंजूरी मिलना. वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक पर राज्यों को शामिल किए बिना आगे बढ़ना कठिन है. हालांकि, लोकसभा और राज्यसभा से पारित सामान्य विधेयकों के लिए राज्यों की सीधी सहमति जरूरी नहीं होती.
7. राष्ट्रपति की मंजूरी, बन गया जाएगा कानून
दोनों सदनों से पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति इसे स्वीकृति दे सकते हैं या पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं. कुछ विशेष परिस्थितियों में स्थगित कर सकते हैं. अगर राष्ट्रपति की मुहर लगती है तो गजट नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा और कानून बन जाएगा. इसे सरकार को भेजा जाएगा.
8. कब लागू होगा कानून?
रामनाथ कोविंद कमेटी ने 2029 तक इस कानून के लागू होने की उम्मीद जताई है. पैनल ने संवैधानिक संशोधन की सिफारिश की है, ताकि लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव 2029 तक कराए जा सकें. हालांकि, चर्चाएं यह भी हैं कि इसके क्रियान्वयन की समय-सीमा 2034 तक बढ़ सकती है. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर विधेयक 2026 में पास होता है तो चुनाव आयोग को साल 2029 तक तैयारी करनी होगी. वन नेशन-वन इलेक्शन पूरी तरह लागू होने में 2034 तक का समय लग सकता है. इससे पहले अप्रैल में एक इंटरव्यू में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में जिक्र किया है कि वे 2029 से ‘एक देश एक चुनाव’ कानून लागू करने की कोशिश करेंगे.
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वहीं, विशेषज्ञ कहते हैं कि साल 2029 के चुनाव के बाद राष्ट्रपति नोटिफिकेशन जारी कर सकती हैं और लोकसभा की पहली बैठक की तारीख तय कर सकती हैं. उसके बाद चुनाव होंगे और फिर पांच साल 2034 में लोकसभा का कार्यकाल पूरा होगा. सभी विधानसभाओं का कार्यकाल भी पूरा मान लिया जाएगा, तब जाकर चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं.
पिछले साल सितंबर में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी ने इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. साढ़े 18 हजार पन्नों की इस रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ नगर पालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने से जुड़ी सिफारिशें थीं. समिति ने कहा था कि देश में दो चरणों में एक साथ चुनाव करवाए जा सकते हैं.
पहले चरण में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव करवा दिए जाएं. समिति ने सिफारिश की थी कि 2029 में इसकी शुरुआत की जा सकती है, ताकि फिर हर पांच साल में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी हो सकें. जबकि, दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव करवाए जाएं. नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोकसभा-विधानसभा चुनाव खत्म होने के 100 दिन के भीतर कराए जाने चाहिए.
9. संविधान में कितने संशोधन होंगे?
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने के लिए अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 समेत अन्य को संशोधित करने की जरूरत है. इस विधेयक में नए अनुच्छेद 82ए को शामिल करने का प्रस्ताव है, जिसके तहत लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) और अनुच्छेद 327 (विधानमंडलों के चुनाव के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन किया जाना है. अनुच्छेद-83 के मुताबिक, लोकसभा का कार्यकाल पांच साल तक रहेगा. अनुच्छेद- 83(2) में प्रावधान है कि इस कार्यकाल को एक बार में सिर्फ एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. अनुच्छेद-172 में विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का तय किया गया है. हालांकि, अनुच्छेद-83(2) के तहत, विधानसभा का कार्यकाल भी एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
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10. कैसे बदलेगा राज्यों का चुनावी शेड्यूल
विधेयक में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के लिए अनुच्छेद 82A जोड़ा गया है. ऐसे में सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म हो जाएगा. यानी अगर अगर ये अनुच्छेद 2029 से पहले लागू हो जाता है तो सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक होगा. जैसे- अगर किसी राज्य में विधानसभा चुनाव 2027 में होते हैं तब भी उसका कार्यकाल जून 2029 तक ही होगा. इस हिसाब से सभी राज्यों में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के चुनाव भी कराए जा सकेंगे.
कब किस राज्य में भंग हो सकती हैं विधानसभाएं
– आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के साथ ही खत्म होगा. हरियाणा और महाराष्ट्र का कार्यकाल 6 महीने बाद खत्म होगा. यानी, इन दो राज्यों में लगभग साढ़े छह महीने पहले विधानसभा भंग करनी होगी. जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल भी करीब साढ़े छह महीने पहले खत्म हो जाएगा.
– झारखंड, बिहार और दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 4 साल का ही होगा. झारखंड में 8 महीने, दिल्ली में 9 महीने और बिहार में लगभग 16 महीने पहले विधानसभा को भंग करना होगा.
– 2026 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में चुनाव होंगे. यानी कि इन राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल 3 साल ही रहेगा.
– साल 2027 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होंगे. इन राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल 2 साल ही रहेगा.
– हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा का कार्यकाल एक साल या उससे भी कम का होगा. ये भी हो सकता है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा का कार्यकाल छह महीने बढ़ा दिया जाए, क्योंकि यहां दिसंबर 2028 में चुनाव होंगे.
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विधेयक में क्या प्रस्ताव हैं?
इस विधेयक में प्रावधान है कि कानून बनने पर आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख पर राष्ट्रपति द्वारा एक अधिसूचना जारी की जाएगी और अधिसूचना की वो तारीख ही नियत तारीख कहलाएगी. लोकसभा का कार्यकाल उस नियत तिथि से पांच वर्ष का होगा. नियत तिथि के बाद और लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले विधानसभाओं के चुनावों के लिए उनका कार्यकाल भी लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के खत्म होने पर समाप्त हो जाएगा. प्रस्ताव के मुताबिक, इसके बाद लोकसभा और विधानसभाओं के सभी आम चुनाव एक साथ कराए जाएंगे.